कबीर साहेब जी की जीवनी परिचय
गुरु की खोज और ज्ञान प्राप्ति
कबीर साहेब जी ने अपने समय के प्रसिद्ध संत और गुरु, स्वामी रामानंद जी से ज्ञान प्राप्त किया। कथा है कि कबीर जी ने गुरु रामानंद जी के चरणों में स्वयं को शिष्य के रूप में समर्पित किया, भले ही वे समाज के निम्न वर्ग में पैदा हुए थे। गुरु ने उन्हें "राम-राम" नाम का मंत्र दिया, जिसे कबीर साहेब जी ने जीवन भर जपते हुए सत्य-ज्ञान का प्रचार किया।
कबीर साहेब जी का संदेश
कबीर साहेब जी का मुख्य संदेश था कि ईश्वर एक है और उसे पाने का मार्ग सरल, सच्चा और निष्कपट होना चाहिए। उन्होंने कहा कि बाहरी पूजा-पाठ, मूर्ति पूजन, तीर्थयात्रा या कर्मकांड से ईश्वर नहीं मिलता, बल्कि सच्चे हृदय से नाम जपने और सदाचरण से ही ईश्वर प्राप्त हो सकता है।
उनके दोहे सीधे, सरल और आम जनता की भाषा में थे, जिससे हर कोई उनका अर्थ समझ सके। उदाहरण के लिए—
"पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय, ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।"
समाज सुधार में योगदान
कबीर साहेब जी ने हिंदू-मुस्लिम एकता पर जोर दिया। वे धार्मिक भेदभाव, जात-पात, ऊँच-नीच और अंधविश्वास के घोर विरोधी थे। उन्होंने समाज को समझाया कि इंसान का असली धर्म मानवता है। उनके समय में समाज हिंदू-मुस्लिम मतभेदों और धार्मिक कट्टरता में बंटा हुआ था, लेकिन कबीर जी ने सबको एक ईश्वर की भक्ति का मार्ग दिखाया।
प्रमुख ग्रंथ और वाणी
कबीर साहेब जी ने स्वयं कोई ग्रंथ नहीं लिखा, लेकिन उनकी वाणी और दोहे उनके शिष्यों द्वारा "बीजक" नामक ग्रंथ में संकलित किए गए। बीजक में साखी, सबद और रमैनी के रूप में उनकी वाणी संरक्षित है। इसके अलावा "कबीर ग्रंथावली" भी उनके विचारों का संग्रह है।
अंतिम समय और परलोक गमन
कबीर साहेब जी का निधन 1518 ईस्वी में माना जाता है। उनके परलोक गमन की कथा भी अद्भुत है। कहा जाता है कि जब उनका शरीर पंचतत्व में विलीन हुआ तो वहां केवल फूल ही बचे। हिंदू और मुस्लिम अनुयायियों ने इन फूलों को आधा-आधा बांटकर अपने-अपने रीति-रिवाज के अनुसार अंतिम संस्कार किया।
आज के समय में कबीर साहेब जी की प्रासंगिकता
आज जब समाज फिर से जात-पात, धार्मिक विभाजन और कट्टरता की ओर बढ़ रहा है, कबीर साहेब जी की शिक्षाएं पहले से भी ज्यादा जरूरी हैं। उनका संदेश है—
प्रेम और भाईचारा
सत्य और सरलता
अंधविश्वास से मुक्ति
मानवता को सर्वोपरि रखना
निष्कर्ष
कबीर साहेब जी का जीवन इस बात का प्रमाण है कि सच्चा ज्ञान किसी जाति, वर्ग या धर्म पर निर्भर नहीं करता। उनके विचार और उपदेश अनंत काल तक मानव समाज के लिए प्रेरणा स्रोत बने रहेंगे
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